आत्म-अभ्यास
वशिष्ठजी कहते हैं: “जो ज्ञानवान ऋषि, महर्षि हैं, भले उनके जीवन में कई विघ्न-बाधाएँ भी आती हैं परंतु उनका चित्त सदा अपने आत्म-अभ्यास से सुसज्ज होता है ।”
भगवान राम ने बाल्यकाल से संध्या, प्राणायाम ध्यान आदि किया था, और सोलह साल की उम्र में तीर्थयात्रा करने निकल गये थे । साल भर तीर्थयात्रा करते संसार की स्थिति का गहन अध्ययन करते हुए इस नतीजे पर आये कि बड़े-बड़े महल खण्डहर हो जाते हैं, बड़े-बड़े नाले नदियाँ रुख बदल देती हैं । बस्ती शमशान हो जाती है और शमशान बस्ती में बदल जाता है। यह सब संसार की नश्वरता देखकर भगवान रामजी को वैराग्य हुआ । संसार के विकारी जीवन से, विकारी सुख से उन्हे वैराग्य हुआ । वे वशिष्ठजी मुनि का ज्ञान सुनते थे । ज्ञान सुनते-सुनते उसमें तल्लीन हो जाते थे । रात भर आत्मज्ञान के विचारों में जागते रहते थे । कभी घड़ी भर सोते थे और फिर झट से ब्राह्ममुहूर्त में उठ जाते थे । श्रीरामचन्द्रजी ने थोड़े ही समय में अपने सदगुरुके वचनों का साक्षात्कार कर लिया ।
विवेकानन्द सात साल तक साधना में लगे रहे । भोजन में किसी पवित्र घर की ही भिक्षा खाते थे । साधन-भजन के दिनों में बहिर्मुख निगुरे लोगों के हाथ का अन्न कभी नहीं लेते थे । पवित्र घर की रोटी भिक्षा में लेते और वह रोटी लाकर रख देते थे । ध्यान करते जब भूख लगती तो रोटी खा लेते थे । कभी तो सात दिन की बासी रोटी हो जाती । उसको चबाते-चबाते मसूढ़ोंमें खून निकल आता । फिर भी विवेकानन्द आध्यात्मिक मार्ग पर डटे रहे । ऐसा नहीं सोचते थे कि “घर जाकर ताजा रोटी खाकर भजन करेंगे ।” वे जानते थे कि कितनी भी कठिनाई आ जाये फिर भी आत्मज्ञान पाना ज़रुरी है । गुरु के वचनों का साक्षात्कार करना ज़रूरी है । जो बुद्धिमान ऐसा समझता है उसको प्रत्येक मिनट का सदुपयोग करने की रुचि होती है । उसे कहना नहीं पड़ता कि ध्यान करो, नियम करो, सुबह जल्दी उठकर संध्या में बैठो । जो अपनी ज़िन्दगी की कदर करता है वह तत्पर हो जाता है ।
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Posted on May 5, 2015, in Satsang and tagged abhyas, asaram bapu ji, asaramji, asaramji bapu, AsaramjiBapu.Org, atma, bhagavan, dhyan, pranayam, Ram, sadhan, safalata, sandhya, sansar, vairagya, vashishtha, vivekanand. Bookmark the permalink. Leave a comment.
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